Monday, December 30, 2013

आम आदमी पार्टी : संकल्प और संभावना







जब राहुल गाँधी महाराष्ट्र सरकार द्वारा आदर्श घोटाले की जांच रिपोर्ट खारिज करने की निंदा करते हैं, जब कांग्रेस हाई कमान कांग्रेसशासित प्रदेशों की सरकारों को निर्देश देती है कि फरवरी तक लोकायुक्त कानून बन जाने चाहियें और जब भा.ज.पा को अचानक राजनीतिक नैतिकता का ख्याल आता है और सभासदों की खरीद-फरोख्त में न पड़कर दिल्ली में सरकार बनाने से मना कर देती है तो हमें साधारणतः अचरज होना चाहिए. लेकिन वर्तमान परिथितियों में जहां २०१४ के आम चुनाव पास हों और आम आदमी पार्टी राजनीतिक व्यवहार में नए आयाम स्थापित कर रही हो तो देश के राजनीतिक पर्यावरण में इस सकारात्मक बदलाव का कारण समझ में आने लगता है.

शनिवार के शपथ समारोह की समाप्ती के साथ ही आम आदमी पार्टी ने अपनी सियासती यात्रा में एक ऐसा मीलपत्थर पार कर लिया है जिसके बाद वह एक प्रतिवादी आन्दोलन से सत्ताधारी दल में परिवर्तित हो गयी है. कल तक जिनको सड़कछाप सत्ता के लोभी कहकर नज़रंदाज़ कर दिया जाता था, या उनपर कटाक्षेप होते थे, आज वो ही लोग न केवल आदर कि दृष्टी से देखे जा रहे हैं बल्कि अब उनसे देश की राजनीति में सुधार लाने की अपेक्षा भी की जाने लगी है. अरविन्द केजरीवाल ने इसको कुदरत का कमाल बताया है. लेकिन संभवतः इसको प्रजातंत्र का कमाल कहना अधिक उचित होगा. रामलीला मैदान में केजरीवाल के भाषण से यह साफ़ प्रतीत हो रहा था कि उनको इस बात का पूरा एहसास है. उनको इस बात का भी एहसास है कि उनकी पार्टी ने जो वायदे दिल्ली की जनता से किये हैं उनको पूरा करने के लिए समय बहुत ही कम है. 

कांग्रेस के समर्थन से बनी इस सरकार के हाथ बांधे रखने की पूरी कोशिश की जाएगी. यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि २०१४ के आम चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस का आम आदमी पार्टी के प्रति क्या रुख होगा. अभी भी यह कहना मुश्किल है कि आप सरकार १ हफ्ता चलेगी या एक महीना. परन्तु यह माना जा सकता है कि जो राजनीतिक स्थिति इस समय उभर कर सामने आ रही है उसमे कम से कम ६ महीनों तक की समयावधी आ.आ.प सरकार के पास है जिसमे वह अपने कुछ वायदे तो पूरे कर ही सकती है, विशेषकर ७०० लीटर निःशुल्क पानी, और बिजली के दामों में ५०% कमी के मामलों को लेकर. नये लोकायुक्त बिल को कानून का स्वरुप देने की भी भरपूर कोशिश की जा सकती है. देर सवेर ही सही सफलता मिलने के पूरे आसार हैं. लेकिन कठिनाईयां तब उठेंगी जब भ्रष्ट नेताओं के विरुद्ध जांच आरम्भ होगी. क्या दोनों राष्ट्रीय स्तर की पार्टियां मूक बन आ.आ.प. की इस मोहिम को केवल देखती रहेंगी? स्पष्टतः ऐसा नहीं होगा. परिणामस्वरुप आ.आ.प सरकार का तख्ता पलट दिया जायेगा. इसलिए केजरीवाल और उनके सहयोगियों का सारा दारोमदार अपने उन वायदों को पूरा करने पर रहना चाहिए जिनसे न केवल दिल्ली में बल्कि देश भर में उनको एक विश्वसनीय निष्पादक के रूप में पहचाना जाये. यह तो आम नागरिक भी समझ सकते हैं कि समय के अभाव और विपरीत परिस्थितयों के कारण आ.आ.प अपने सारे वायदे पूरे नहीं कर पायेगी. परन्तु अगर वह अपने कुछ वायदे भी पूरे कर लेती है और अन्यों को पूरा करने में अपनी निष्ठा में कमी नहीं आने देती तो कोई वजह नहीं दिकाई देती जिससे २०१४ के चुनावों में वह राष्ट्रीय स्तर पर एक मज़बूत राजनीतिक इकाई बनके न उभर सके.

परन्तु इस समय आ.आ.प को इस बात का ध्यान रखना होगा कि वह राजनीती के जंगल में ऐसा सिंहशावक है जिससे अन्य जीव भयभीत भी हैं और चिढ़े हुए भी. और न तो उसका कोई वास्तविक रक्षक है और न ही समर्थक. वन के जीवों को डर है कि कहीं यह शावक बड़ा होकर सशक्त हो गया तो उनके परम्परागत आधिपत्य संकट में पड़ सकते हैं. ज़रा कल्पना कीजिए कि ऐसे शावक की क्या स्थिती होगी जो क्रुद्ध हिंसक जंतुओं से घिरा हुआ हो. प्रतिदिन आ.आ.प के विरुद्ध कोई ना कोई नेता ऐसे बयान जारी करता रहता है जिस से आम जनता में भ्रांतियां उत्पन्न हों. कुछ तो अब भी आ.आ.प का नाम सुनते ही नाक भौं सिकोड़ने लगते हैं मानो कि पांच सितारा होटल में कोई निम्न मध्य वर्ग का व्यक्ती आ घुसा हो. अगर अभी खुलकर हमला नहीं हो रहा है और केवल इक्का-दुक्का शाब्दिक आक्रमण ही हो रहे हैं तो इसका केजरीवाल और उनके साथियों को पूरा लाभ उठाना चाहिए. उनको बदले की राजनीती से दूर रहकर अपने अधिक से अधिक लक्ष्य प्राप्त करने का भरपूर प्रयास करना चाहिए.  

इस समय देश को ज़रुरत है एक स्वस्थ राजनीतिक मानसिकता की. आ.आ.प इसमें भरपूर योगदान दे सकती है. और इसका सकारात्मक असर अन्य राजनीतिक दलों के आचरण पर भी देखने को मिलेगा.

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