सदियों से चंगेज़ खान से लेकर पुतिन तक
महत्वकांक्षी लोगों ने अपना साम्राज्य स्थापित करने का भरसक प्रयत्न किया है. चाहे
वो हिटलर सरीखे नफरत फैलाने वाले थे या सिकंदर और सीज़र जैसे अहंकारोन्मादी विजेता।
नेपोलियन बोनापार्ट में भी ऐसी प्रवृत्तियाँ थी लेकिन फिर भी वो उन सब से निराला था।
नेपोलियन फ्रांस के कोर्सिका द्वीप में
पैदा हुआ था। उसने फ़्रांसीसी क्रांति के दौरान फ़ौज में बहुत तेजी से तरक्की करी। यह
क्रांति 1787 में रईसों की बग़ावत से शुरू हुई थी जब सर्कार ने राजकोषीय सुधार लाने
का प्रयत्न किया। 1788 में फ्रांस में अकाल पड़ने से वहां के वंचित वर्गों ने ऐसी क्रांति
को जन्म दिया जिसमे राजतन्त्र, रईस वर्ग और पादरी वर्ग का विनाश हो गया।
संभवतः सम्राट अशोक को छोड़कर नेपोलियन
विश्व में एकमात्र ऐसा विजेता होगा जिसने जाने-अनजाने बहुत सी समाज-सुधारक धारणाओं
को विश्व भर में प्रोत्साहित किया। नेपोलियन के मामले में यह धारणाएं थी आज़ादी, समानता
और भाईचारा। आत्मविश्वास से भरपूर नेपोलियन इतिहास में महानतम स्वामिर्मित व्यक्तियों
में एक था। वो नास्तिक था लेकिन उसको विश्वास था कि उसके भाग्य में महानता और विश्व
पर राज करना लिखा हुआ था। लेकिन वो भाग्य के भरोसे रहने वाला नहीं था। अपना सपना पूरा करने के लिए उसने भरपूर कोशिशे की,
और 9 नवंबर 1799 को वो फ्रांस का कर्णधार बन गया।
नेपोलियन का महान होने का सफर और पतन
अपने आप में एक दिलचस्प कथानक है।
सितम्बर 1792 में फ्रांस की नेशनल कन्वेंशन
ने राजतन्त्र को हटाकर गणतंत्र स्थापित कर दिया। वहां के राजा लूई 16 को 21 जनुअरी
1793 को गिलोटिन से मृत्यु दंड दिया गया। उसकी पत्नी मारी एंटोनेट को भी नौ महीनो बाद
इसी तरह से मार दिया गया। इसके बाद वहां आतंक का एकछत्र राज हो गया। सरकार द्वारा स्वीकृत
हिंसा और हत्या आम हो गए। 5 सितम्बर 1793 और 27 जुलाई 1794 के बीच फ्रांस की क्रांतिकारी
सरकार ने हज़ारों लोगो की हत्या और गिरफ्तारी के हुकुम दिए। रॉबस्पियर द्वारा संचालित
समाज सुरक्षा समिति ने मुल्ज़िम के वकील और सार्वजानिक मुकदमें के अधिकारों को निलंबित
कर दिया। अब जूरी के पास दो ही विकल्प थे - दोषमुक्ति या मृत्युदंड। इस प्रकार करीब
17000 लोगो को मृत्यदंड मिला। जिनको कैद की
सजा दी गयी उनमे से 10000 जेल में ही सड़ कर मर गए। इन कारणों से रॉबस्पियर का पतन हुआ।
फ्रांस के सम्राट के मृत्युदंड के बाद
वहां अराजकता बहुत बढ़ गयी। देश पर प्रतिस्पर्धी गुटों की मिलीजुली सर्कार स्थापित हुई
जिसको डायरेक्टरी कहा जाता था। ये गुट आपस में लड़ते रहते थे। जो हार जाता उसको गिलोटिन
से मृत्युदंड दिया जाता। इस प्रकार हज़ारो बेक़सूर या तो मारे गए या उनको कारागार में
दाल दिया गया।
एक तरफ फ्रांस में आपसी कलह से खून की
नदियां बहाई जा रही थी और दूसरी तरफ नेपोलियन बाहरी शत्रुओं पर एक के बाद एक विजय प्राप्त
कर रहा था ताकि उसकी मातृभूमि पर कोई दूसरा देश हावी न हो सके। उसने उत्तरी इटली और
नेथरलैंड्स पर कब्ज़ा कर लिया। उसके बाद उसने मिस्र पर धावा बोला और अनेक युद्धों में
शानदार जीत हासिल की। फ्रांस के घर-घर में उसकी चर्चा होने लगी। नेपोलियन इतना लोकप्रिय
और शक्तिशाली हो गया कि 9 नवंबर 1799 को उसने
डायरेक्टरी सरकार का तख्ता पलट दिया।
जून 1800 में नेपोलियन ने ऑस्ट्रिया
की सेना को मरेंगो के युद्ध में हराकर इटली से मार भगाया। 1802 में आमिएन्स की संधि
द्वारा उसने ब्रिटैन के साथ शांति स्थापित की लेकिन ये एक साल से ज़्यादा नहीं टिक सकी।
क्रान्ति के बाद डांवाडोल हुए फ्रांस
को नेपोलियन ने सुदृढ़ करा। सरकारी व्यवस्था का केन्द्रीकरण किया। बैंक और शिक्षा के
क्षेत्रों में सुधार करे। विज्ञान और ललित कलाओं को प्रोत्साहित किया। वैटिकन में पोप
के साथ संबंधों को सुधारा। जैसा की आप जानते हैं की फ्रांस का प्रमुख मज़हब कैथोलिक
क्रिश्चियनिटी है और पोप उसके सर्वोपरी सरगना हैं। क्रांति के दौरान फ्रांस और पोप
के बीच सम्बन्ध बिगड़ गए थे।
नेपोलियन ने ऐसी आचार संहिता रची जिससे
वहां की कानून प्रणाली सुव्यवस्थित हो गयी और आज भी फ्रांस की कानून व्यवस्था का आधार
है।
1802 में एक संवैधानिक संशोधन द्वारा
नेपोलियन जीवनपर्यन्त फ्रांस का प्रथम कौंसल बन गया और आसानी से राष्ट्रीय जनमत द्वारा
इसका पुष्टिकरण भी करवा लिया। उसके हक़ में करीब तीन लाख साठ हज़ार वोट पड़े और विरोध
में आठ हज़ार चार सौ। 1804 में उसने अपने आप को फ्रांस का सम्राट घोषित कर दिया। उसका
राजतिलक पेरिस के नोट्रडाम कथीड्रल में हुआ। और इसका पुष्टिकरण भी उसने जनमत द्वारा
करवा लिया। संविधान का पहला वाक्य कुछ यूं था, "गणतंत्र का कार्यभार सम्राट को
सौंपा जाता है। "
1803 में नेपोलियन ने उत्तरी अमरीका
में लोउसिआना नामक फ़्रांसीसी क्षेत्र को डेढ़ करोड़ डॉलर में संयुक्त राज्य अमरीका को
बेच दिया। इस धनराशि से अपना सैन्यबल बढाकर उसने अनेक यूरोपीय राज्यों और संगठनों के
विरुद्ध युद्ध किये। लेकिन 1805 में ट्राफलगर के युद्ध में पराजित होना पड़ा। उसी वर्ष
के दिसंबर में उसने ऑस्टेर्लिट्ज़ के युद्ध में रूस और ऑस्ट्रिया को हराया। इसका नतीजा
ये हुआ कि होली रोमन एम्पायर हमेशा के लिए समाप्त हो गया।
1806 में उसने ब्रिटैन के विरुद्ध आर्थिक
नाकेबंदी कर दी। 1807 में उसने रूस को प्राशिआ के फ्रीडलैंड में पराजित किया। 1809
में उसने वाग्राम के युद्ध में ऑस्ट्रिया को हराया।
जिस रईसी को फ़्रांसिसी क्रांति ने ख़त्म
कर दिया था उसको नेपोलियन ने पुनर्स्थापित किया। साथ साथ वह अपना साम्राज्य पश्चिमी
और मध्य यूरोप में बढ़ाता चला गया और फ़्रांसिसी क्रांति की उपलब्धियों को बढ़ावा देता
रहा। उसने फ्रांस तो मज़बूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सार्जनिक निर्माणकार्यों को
प्रोत्साहित किया और सामाजिक सुधारों पर विशेष ध्यान दिया। एक तरफ आचारसंहिता के तहत
उसने व्यक्तिगत स्वतंत्रता, अंतःकरण की आज़ादी और क़ानून के समक्ष समानता जैसी उपलब्धियों
को सुदृढ़ किया और दूसरी तरफ उस समय तक की सबसे सशक्त सेना का निर्माण भी किया। उसने
ज्येष्ठपुत्र के अधिकार, वंशवाद और रईसी विशेषाधिकार समाप्त कर दिए। सामाजिक संस्थाओं
को चर्च के शिकंजे से मुक्त किया और अनेक मौलिक अधिकारों को स्थापित किया।
सर्वप्रथम यह आचार संहिता 1804 में उन
क्षेत्रों में लागू की गयी जहां फ्रांस का प्रभुत्व था। जैसे की बेल्जियम, लक्सेम्बर्ग,
पश्चिमी जर्मनी के कुछ हिस्से, उत्तरपश्चिमी इटली, जिनेवा, और मोनाको।
जून 1812 में नेपोलियन ने अपने छह लाख
सैनिको के साथ रूस पर धावा इसलिए बोल दिया क्योंकि ब्रिटैन के विरुद्ध आर्थिक नाकेबंदी
में रूस ने साथ देने से इंकार कर दिया था। सितम्बर में उसने मास्को पर कब्ज़ा कर लिया
लेकिन वहां के ज़ार एलेग्जेंडर ने संधी करने से इंकार कर दिया। जैसे ही सर्दी का मौसम
शुरू हुआ तो नेपोलियन की सेना का बुरा हाल हो गया। न तो उसके पास पर्याप्त अन्न भण्डार
बचे और न ही अन्य सैन्य सामग्री। छह लाख में से केवल दस हज़ार सैनिक ही युद्ध करने लायक
बचे। इसी दौरान सलमानका के युद्ध में उसको मात खानी पडी। ऑस्ट्रिया और प्रशिया भी जब
जंग में कूद पड़े तो नेपोलियन को मध्य यूरोप से पीछे हटना पड़ा। अचानक उसका साम्राज्य
टूटकर बिखरने लगा।
30 मार्च 1814 को यूरोप की संगठित सेनाओं
ने पेरिस पर चढ़ाई कर दी। एक हफ्ते बाद नेपोलियन ने अपना पद त्याग दिया। उसके स्थान
पर लूई 18 को फ्रांस के सिंहासन पर बिठा दिया गया और नेपोलियन को एल्बा नामक द्वीप
में नज़रबंद कर दिया गया। ऐसा लगा सब कुछ समाप्त हो गया। लेकिन नेपोलियन जांबाज़ था।
20 मार्च 1815 को वो पेरिस वापिस आ गया।
नेपोलियन ने फ्रांस में अपना समर्थन
व्यापक बनाने की कोशिश की। संविधान में उदारवादी बदलाव लाकर उसने विदेशी विरोधियों को अपनी तरफ करने का प्रयत्न भी किया।
जून 1815 में उसने बेल्जियम पर हमला किया। लेकिन 18 जून को वेलिंगटन ने उसे वॉटरलू
के युद्ध में हरा दिया। उसको गिरफ्तार करके सेंट हेलेना नामक द्वीप में नज़रबंद कर दिया
गया। 1821 में कैंसर से उसकी मृत्यु हो गयी। वो केवल 51 वर्ष का था।
नेपोलियन की विरासत विशाल और बहुमुखी
है। जहां भी उसके सैनिक गए अपने साथ समानता के आदर्श साथ लेकर गए। फ़्रांसिसी क्रांति
से उत्पन्न उदारवादी विचारों की जड़ें इतनी गहरी और मज़बूत साबित हुईं कि कोई भी राजा
या तानाशाह उनको उखाड़ नहीं सका।
जिस तरह से उसने अपनी तानाशाही प्रवृत्तियों
का अनुमोदन जनमत संग्रह से करवाया उसी तरह से हिटलर, मुसोलिनी, फ्रांको आदि ने भी प्रयत्न
किया लेकिन उतनी सफलता नहीं मिली। उसकी सबसे बड़ी देन है ऐसी कानून व्यवस्था जिसमे सब
सामान हैं। उसने प्रतिभावाद, आज़ादी, समानता और भाईचारे को देश के चरित्र का हिस्सा
बना दिया जिसका अनुसरण अब विश्व भर में होने लगा है।
No comments:
Post a Comment